photo =गूगल से साभार
दिल्ली के दिल पर प्रहार हो रहा है
आँखे जल रही इंसान मर रहा है
खुद के फैलाये जहर से
इंसान खुद ही रो रहा है
और बताओ क्या हो रहा है
खाकी बनी भक्षक, काला कोट कफन बन रहा है
लड़ रहे हैं आपस में कानून मर रहा है
न्याय, कानून, संस्थान, संविधान है खतरे में
राजनीति हो रही हावी नेता सिर चढ़ बोल रहा है
और बताओ क्या हो रहा है
आजादी सबकी छीन रहीं मानव मूल्य घट रहा है
ताकत का बोलबाला है हीनों में मौन बँट रहा है
आम आदमी गरीब, बेरोजगार, लाचार हो रहा है
और बोल रहे हैं बहुत विकास हो रहा है
और बताओ क्या हो रहा है
हमें किसी की फ़िक्र क्यूँ नहीं
ये क्या हो रहा है
व्यस्त हैं सभी या पतन हो रहा है
और बताओ क्या हो रहा है
✍️Ashwini Dhundhara
अश्विनी जी, क्या क्या हो रहा है ये बताकर सबको जागृत करने के लिए आपने बहुत अच्छी रचना लिखी है।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना दी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है
Delete"व्यस्त हैं सभी या पतन हो रहा है" ... सोचने को मजबूर करती रचना ...अश्विनी .. बस लिखते जाओ भाई ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteखुद के फैलाये जहर से
ReplyDeleteइंसान खुद ही रो रहा है
सार्थक और सटीक
आजकल आस पास जो हो रहा है घट रहा है, ये सब देख कर, सहन कर ऐसी भावनाएं उत्पन्न हो ही जातीं हैं
बधाई
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आभार जोया जी
Deleteधीरे धीरे भावों की धार बन रही है भाई।
ReplyDeleteमैं चाहता हूं कि अपनी धार को यूं ही तीक्ष्ण करते जाओ।
ये रचना बेहद शानदार है।
ये एक ऐसा जाल समाज के ठेकेदारों का बनाया हुआ जिसमें आदमी फंसा हुआ है
यही जाल फुट डालता है ताकि आपस में एक ना हो जाएं। सब फंस कर अंधे हो गए हैं। व्यस्त भी है और पतन भी हो रहा है लेकिन इनको पता नहीं चल रहा है। हो रहे अपने पतन के दौरान किसी अन्य का पूर्णतः पतन देख कर खुश भी हो रहा है।
इससे आगे की जो बात है कि आदमी का पतन भी हो रहा है और फिर भी इसके पास ये मुद्दा नहीं बनता कि हम क्यों खत्म हो रहे हैं। इसी पर मेरी रचना " जागृत आँख " है।
जी धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत खूब ... और बताओ क्या हो रहा है ...
ReplyDeleteगज़ब की व्यंग धार ... हर छंद लाजवाब है ...
आभार
Deleteशानदार प्रस्तुति, चल रहे और आनेवाली भयावहता का खाका खिंचती, उस पर चिंता व्यक्त करती, व्यंग के साथ यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए
Deleteधन्यवाद आदरणीया मेरी रचना को चर्चा का हिस्सा बनाने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने !
ReplyDeleteबहुत खूब , प्रिय अश्विनी | ये कवि का ही धर्म है कि समाज में हो रही असमान्य गतिविधियों से लोगों को अवगत कराए अच्छा लिख रहे हैं आप ? सस्नेह शुभकामनायें और आभार |
ReplyDeleteधन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है
Delete