कभी कभी ऐेसे ही अचानक मन करता है
सब कुछ छोड़कर, परेशानियों को भुलाकर
चलो आज चलते हैं किसी
बचपन के दोस्त से मिलने
वापिस बचपन को जीने वापिस वहीं बाते दोहराने जिनसे परेशानियां तोबा करती है
लेकिन, कुछ बाते जो अब बचपन जेसी नहीं है
उनका अभ्यास करना जरूरी है
जेसे बिन बताये अचानक से जाना
उसका मुझे और मेरा उसे देखकर खुश होना
चलो लगे हाथ एक दोस्त से और मुलाकात हों
चलो बाइक की बजाये अपन साइकिल पर सवार हों
हाँ मोबाइल को भी घर ही रखकर जाऊँगा
चाहे लाख दर्द हो मेरे, चाहे हंसने की कोई वज़ह ना हो
चाहे नोकरी की चिंता रात को सोने नहीं देती हो
चाहे मेरा आज मुझ पर हंस रहा हो
लेकिन मेरी कोशिश बचपन सा खुश दिखने की ही होगी
बचपन तो अब नहीं आएगा वापिस
लेकिन कम से कम मुलाकात तो हूबहू सी होगी
✍️ ASHWINI DHUNDHARA
आभार रवीन्द्र जी 🙏
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
धन्यवाद सुधा जी 🙏
Deleteक्या बात है..लगा रह छोटे।
ReplyDeleteजोरदार बन गयी है
लेकिन अभी भी मंजिल दूर है
असर हो रहा है धीरे धीरे सुधार की तरफ़...एक दिन बन ही जायेंगे कोई नितारी हुई चीज
जो जहर जितनी नशीली होगी।
वाह
लव यू bro
आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन बड़े भइया 🙏😍
Deleteकठिन है। मुलाकात भी हूबहू नहीं होती बचपन से। उसमें भी कृत्रिमता आ जाती है।
ReplyDeleteअच्छी कोशिश। लिखते रहें।
लगभग नामुमकिन सा ही है इस कृत्रिमता और प्राकृतिकता के बीच का अन्तर कम करने की कोशिश ही रहती है बस .. .. . अमूल्य प्रतिक्रया के लिए आभार मीना दी 🙏
Deleteअश्वनी 😍👍👍
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत खूब 👌💐
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर 👏
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी 🙏
Deleteसुंदर लेखन अश्विनी जी।
ReplyDeleteआभार पुरुषोत्तम जी
Deleteचलो बाइक की बजाये अपन साइकिल पर सवार हों
ReplyDeleteहाँ मोबाइल को भी घर ही रखकर जाऊँगा
bahut zarrurat he aisi dosti aur aisi mulaakaaton ki...jo aajkal hoti hi nhi .....aalam ye ke khud se bhi milne ke liye phone ki au dekhna pdhta he..
dil se likha..dil tak pahunchaa
bdhaayi
धन्यवाद जोया जी
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