फोटो =गूगल से साभार
शब्दों को पिरोना और लिखने का हुनर सबने सीखा
किसी ने कुछ खास लिखा, किसी ने कुछ आम लिखा
दिवाली पर दिवाली का लिखा, होली पर होली का लिखा
भला लिखने को भी अब इंसान परंपरा बनाता दिखा
बाहर दिवाली जा रही थी शांति से कोई बंद कमरे में बस लिखता दिखा
अपनी भावनाओं को एक विषय में सिकोड़ता, एक कवि मजबूर दिखा
ये कौनसा हुनर था लिखने का जो मेने नहीं सीखा
दो शब्द यहां से उठाए, चार शब्द वहां रखे हर कोई जुगाड़ बनाता दिखा
सब कुछ पढ़कर हंसी निकल गयी अचानक
तब किसी ने धीरे से कान में कहा
"तु उदास क्यूँ हो रहा है अगर तूने कुछ नहीं लिखा
ये जो सबने लिखा ये तो एक मशीन ने लिखा "
✍️Ashwini Dhundhara
वाह वाह
ReplyDeleteभाई आपने तो मुंह की बात छीन ली।
आजकल ब्लॉग पर आने का मन ही नहीं करता।
ये दिया, बाती, दीपक, दीपावली, रोशनी, रौनक, खुशियां, धन, लक्ष्मी, राम, पूजा, पटाखे, प्रदूषण और पता नहीं क्या क्या घूम घूम कर पिछले 15 दिनों से लोगों (जानबूझकर कवि या लेखक नहीं कह रहा) ने इन्हीं विषयों पर खूब ज्ञान बांटा खूब रचनाएं करी। हर कोई एक जैसी बात लिख रहा था। अगर मैं लगातार पढ़ता रहता तो पागलपन का शिकार हो जाता इसलिए ब्लॉग से छुट्टी ले ली थी।
वैसे कवि या लेखक का अपना कोई धर्म नहीं होता मगर यहां ब्लॉग पर आकर पता चला कि हिंदी में लिखने वालों का धर्म हिन्दू होता है।
क्योंकि मैंने और किसी भी त्योहार पर (लोहड़ी, ईद, मोहर्रम, क्रिसमस, बौद्ध पूर्णिमा या महावीर जयंती....) इतनी रचनाएं नहीं पढ़ी या देखी।
मेरी नज़र में विशेष धर्म के त्योहार पर लिखना और खूब ही लिखना एक साहित्यकार का काम नहीं होता बल्कि ऐसा करने वाला अपने धर्म प्रचारक के अलावा कुछ नहीं होता।
पढ़ कर सकूं पड़ा।
मेरी भी कुछ यहीं हाल था.....कुछ नया खोजने निकला था ब्लॉग पर ये सब देखकर मन हताश हो गया
Deleteऔर फिर लिखा गया अपने आप .. सच
कुछ अलग से लिखा आपने पढ़कर आपको अच्छा लगा.. लिखने को बहुत सारी विषय है पता नहीं हम सब लोगों का ध्यान उस तरफ क्यों नहीं जाता है ज्यादातर कवि कहूं लेखक परंपरा वादी लेखन से ही बंधे रह जाते हैं... कुछ दिनों पहले मैंने चर्चामंच के 1 अंक में विदेशी कवि पाब्लो रश्दी जी को पढ़ा.. उन्हें पढ़ना मुझे एक अद्भुत अनुभूति दे गया हमारे यहां के लेखन में ज्यादातर पेड़-पौधे पक्षी जंगल नदी इन सबका ही वर्णन मिलता है! परंतु सामाजिक क्रियाकलापों से जुड़ी रचनाएं कम ही देखने को मिलती है.
ReplyDelete.. खैर आपने बहुत अच्छी रचना लिखी इसके लिए आपको बधाई!!
वेसे तो लिखने को कोई भी विषय अछूता नहीं रहा है लेकिन फिर भी एक लय से हटकर कुछ अलग लिखने का प्रयत्न करने के मकसद से ही ब्लाग शुरू किया है
Deleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद अनु जी
वाह!!अच्छा लिखा ,कुछ अलग सा !पढकर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteशुक्रिया शुभा जी
Deleteवाह !
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteवाकई बहुत सुन्दर रचना ! इसे पढ़ कर भरोसा हो गया है कम से कम इसे तो मशीन ने नहीं लिखा ! साधुवाद !
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया साधना जी 🙏
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteभेड़ चाल से मन में भरी वितृष्णा को तंज के रूप में पेश किया आपने ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
शुक्रिया 🙏
Deleteवाह! अद्भुत। बिल्कुल भिन्न दृश्य प्रस्तुत किया आपने। बिन भावनाओं की लिखी रचनाएँ, मशीन की लिखी रचनाएँ ही कहलाती है।
ReplyDeleteआभार प्रकाश साह जी 🙏
Deleteबहुत खूब ... अलग तो हर कोई चाहता है लिखना पर अपनी सोच से आगे लिख कहाँ पाटा है कोई ...
ReplyDeleteशुक्रिया दिगंबर जी . ... सोच को ही विकसित करके लिखना ही तो लेखन कला होती है . .. यू शब्दों को तो मशीन भी जोड़ करके छाप देती है
Deleteबहुत सुन्दर और लाजवाब सृजन अश्विनी जी ।
ReplyDeleteसराहना के लिए सादर आभार मीना जी
Deleteये कौनसा हुनर था लिखने का जो मेने नहीं सीखा
ReplyDeleteदो शब्द यहां से उठाए, चार शब्द वहां रखे हर कोई जुगाड़ बनाता दिखा
वाह।बेहतरीन।
शुक्रिया डॉ.जफर जी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए
Deleteबढ़िया लिखा है।
ReplyDeleteशुक्रिया तिवारी जी पधारने के लिए
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
आभार सर
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया 🙏
Deleteतु उदास क्यूँ हो रहा है अगर तूने कुछ नहीं लिखा
ReplyDeleteये जो सबने लिखा ये तो एक मशीन ने लिखा "
वाह !!!!!!!रोचक और हल्की फुलकी रचना !!!!वो भी एक नए अंदाज में प्रिय आश्विनी | लिखते रहिये | मेरी शुभकामनायें |
आभार दी
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