Tuesday, October 29, 2019

मशीन ने लिखा

                   
फोटो =गूगल से साभार


शब्दों को पिरोना और लिखने का हुनर सबने सीखा
किसी ने कुछ खास लिखा, किसी ने कुछ आम लिखा

दिवाली पर दिवाली का लिखा, होली पर होली का लिखा
भला लिखने को भी अब इंसान परंपरा बनाता दिखा 

  बाहर दिवाली जा रही थी शांति से कोई बंद कमरे में बस लिखता दिखा 
अपनी भावनाओं को एक विषय में सिकोड़ता, एक कवि मजबूर दिखा 

ये कौनसा हुनर था लिखने का जो मेने नहीं सीखा 
दो शब्द यहां से उठाए, चार शब्द वहां रखे हर कोई जुगाड़ बनाता दिखा 

 सब कुछ पढ़कर हंसी निकल गयी अचानक
तब किसी ने धीरे से कान में कहा

"तु उदास क्यूँ हो रहा है अगर तूने कुछ नहीं लिखा 
ये जो सबने लिखा ये तो एक मशीन ने लिखा  "

✍️Ashwini Dhundhara

30 comments:

  1. वाह वाह
    भाई आपने तो मुंह की बात छीन ली।
    आजकल ब्लॉग पर आने का मन ही नहीं करता।
    ये दिया, बाती, दीपक, दीपावली, रोशनी, रौनक, खुशियां, धन, लक्ष्मी, राम, पूजा, पटाखे, प्रदूषण और पता नहीं क्या क्या घूम घूम कर पिछले 15 दिनों से लोगों (जानबूझकर कवि या लेखक नहीं कह रहा) ने इन्हीं विषयों पर खूब ज्ञान बांटा खूब रचनाएं करी। हर कोई एक जैसी बात लिख रहा था। अगर मैं लगातार पढ़ता रहता तो पागलपन का शिकार हो जाता इसलिए ब्लॉग से छुट्टी ले ली थी।

    वैसे कवि या लेखक का अपना कोई धर्म नहीं होता मगर यहां ब्लॉग पर आकर पता चला कि हिंदी में लिखने वालों का धर्म हिन्दू होता है।
    क्योंकि मैंने और किसी भी त्योहार पर (लोहड़ी, ईद, मोहर्रम, क्रिसमस, बौद्ध पूर्णिमा या महावीर जयंती....) इतनी रचनाएं नहीं पढ़ी या देखी।
    मेरी नज़र में विशेष धर्म के त्योहार पर लिखना और खूब ही लिखना एक साहित्यकार का काम नहीं होता बल्कि ऐसा करने वाला अपने धर्म प्रचारक के अलावा कुछ नहीं होता।

    पढ़ कर सकूं पड़ा।

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    1. मेरी भी कुछ यहीं हाल था.....कुछ नया खोजने निकला था ब्लॉग पर ये सब देखकर मन हताश हो गया

      और फिर लिखा गया अपने आप .. सच


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  2. कुछ अलग से लिखा आपने पढ़कर आपको अच्छा लगा.. लिखने को बहुत सारी विषय है पता नहीं हम सब लोगों का ध्यान उस तरफ क्यों नहीं जाता है ज्यादातर कवि कहूं लेखक परंपरा वादी लेखन से ही बंधे रह जाते हैं... कुछ दिनों पहले मैंने चर्चामंच के 1 अंक में विदेशी कवि पाब्लो रश्दी जी को पढ़ा.. उन्हें पढ़ना मुझे एक अद्भुत अनुभूति दे गया हमारे यहां के लेखन में ज्यादातर पेड़-पौधे पक्षी जंगल नदी इन सबका ही वर्णन मिलता है! परंतु सामाजिक क्रियाकलापों से जुड़ी रचनाएं कम ही देखने को मिलती है.
    .. खैर आपने बहुत अच्छी रचना लिखी इसके लिए आपको बधाई!!

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    1. वेसे तो लिखने को कोई भी विषय अछूता नहीं रहा है लेकिन फिर भी एक लय से हटकर कुछ अलग लिखने का प्रयत्न करने के मकसद से ही ब्लाग शुरू किया है

      उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद अनु जी

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  3. वाह!!अच्छा लिखा ,कुछ अलग सा !पढकर अच्छा लगा ।

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  4. वाकई बहुत सुन्दर रचना ! इसे पढ़ कर भरोसा हो गया है कम से कम इसे तो मशीन ने नहीं लिखा ! साधुवाद !

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    1. धन्यवाद आदरणीया साधना जी 🙏

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. भेड़ चाल से मन में भरी वितृष्णा को तंज के रूप में पेश किया आपने ।
    अप्रतिम।

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  7. वाह! अद्भुत। बिल्कुल भिन्न दृश्य प्रस्तुत किया आपने। बिन भावनाओं की लिखी रचनाएँ, मशीन की लिखी रचनाएँ ही कहलाती है।

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  8. बहुत खूब ... अलग तो हर कोई चाहता है लिखना पर अपनी सोच से आगे लिख कहाँ पाटा है कोई ...

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    1. शुक्रिया दिगंबर जी . ... सोच को ही विकसित करके लिखना ही तो लेखन कला होती है . .. यू शब्दों को तो मशीन भी जोड़ करके छाप देती है

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  9. बहुत सुन्दर और लाजवाब सृजन अश्विनी जी ।

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    1. सराहना के लिए सादर आभार मीना जी

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  10. ये कौनसा हुनर था लिखने का जो मेने नहीं सीखा
    दो शब्द यहां से उठाए, चार शब्द वहां रखे हर कोई जुगाड़ बनाता दिखा


    वाह।बेहतरीन।

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    1. शुक्रिया डॉ.जफर जी बहुमूल्य टिप्पणी के लिए

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  11. बढ़िया लिखा है।

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    1. शुक्रिया तिवारी जी पधारने के लिए

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  13. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  14. तु उदास क्यूँ हो रहा है अगर तूने कुछ नहीं लिखा
    ये जो सबने लिखा ये तो एक मशीन ने लिखा "
    वाह !!!!!!!रोचक और हल्की फुलकी रचना !!!!वो भी एक नए अंदाज में प्रिय आश्विनी | लिखते रहिये | मेरी शुभकामनायें |

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